कार्तिक पूर्णिमा: देव दीपावली का महापर्व, पुण्यफल और शास्त्रीय रहस्य




परिचय: क्यों है कार्तिक पूर्णिमा 'हजारों यज्ञों के फल' के समान?

 कार्तिक पूर्णिमा 2025: महत्व, इतिहास, व्रत-विधि, निषेध, तुलसी-सम्बंध पुराण-साक्ष्य

कार्तिक पूर्णिमा क्या है?

हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली, त्रिपुरारी पूर्णिमा, गंगा स्नान पर्व और महातिथि कहा गया है। यह वह रात्रि है जिसे शास्त्रों मेंअमृत-समान, “पाप-नाशक”, “सर्वसिद्धिदायिनीऔरअनंत कोटि पुण्यफल देने वालीबताया गया है।

यह तिथि भगवान विष्णु, भगवान शिव, तुलसी, गंगा, देवताओं, पितरों और दानव-विजयसभी से एक साथ जुड़ी है। अतः यह हिन्दू धर्म की सर्वाधिक पवित्र तिथियों में से एक मानी जाती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंद्रहवीं तिथि को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं, जिसे सामान्यतः देव दीपावली के नाम से जाना जाता है, यह वह तिथि है जब चंद्र अपनी सोलह कलाओं से युक्त होकर संपूर्ण जगत को अमृत की वर्षा करता है। इसी दिन कार्तिक स्नान की समाप्ति होती है, जिससे इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। शास्त्रों में इस दिवस को "हजारों यज्ञों के फल" के समान पुण्यदायी बताया गया है।

 

इसेदेव दीपावली”, “गंगोदय पर्व”, “त्रिपुरारी पूर्णिमाक्यों कहा जाता है?

  • देव दीपावली: यह माना जाता है कि इस दिन सभी देवी-देवता पृथ्वी पर आते हैं और गंगा के घाटों पर दीपदान करते हैं। विशेष रूप से काशी (वाराणसी) में, यह उत्सव इतना भव्य होता है कि इसे 'देवताओं की दिवाली' यानी देव दीपावली कहा जाता है।

  • त्रिपुरारी पूर्णिमा: इस नाम के पीछे एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है, जिसका वर्णन आगे किया गया है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाबलशाली राक्षस का वध कर देवताओं को भय मुक्त किया था। इस विजय की खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।

  • गंगोदय पर्व: इस दिन गंगा नदी की पूजा का विशेष विधान है। इस तिथि पर गंगा में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। सूर्योदय के समय इस पर्व का उदय होता है, इसलिए इसे गंगोदय पर्व भी पुकारा जाता है।

भारतीय पंचांग में कार्तिक माह का महत्त्व

कार्तिक मास को दामोदर मास और धर्म मास भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) के बाद इसी माह में जागृत होते हैं। यह महीना जप, तप, स्नान और दान के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। तुलसी और शालिग्राम की पूजा, दीपदान और भगवान विष्णु की आराधना इस मास के मुख्य कर्म हैं, जो कार्तिक पूर्णिमा पर चरम पर पहुँचते हैं।


2️ ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि: त्रिपुरारी पूर्णिमा का रहस्य

कार्तिक पूर्णिमा की महिमा का उल्लेख केवल लोक परंपराओं में ही नहीं, बल्कि हमारे सबसे प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथोंवेदों, उपनिषदों और पुराणों में भी मिलता है, जो इसे एक ऐतिहासिक और सार्वभौमिक त्योहार बनाते हैं।

पुराणों में कार्तिक पूर्णिमा का वर्णन

स्कंद पुराण, पद्म पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण और भविष्य पुराण जैसे महापुराणों में इस तिथि का विशेष महत्त्व बताया गया है:

पुराण

मुख्य संदर्भ

स्कंद पुराण

कार्तिक स्नान की महिमा और दीपदान के फल का विस्तृत वर्णन।

पद्म पुराण

तुलसी और शालिग्राम विवाह की कथा और इस दिन दान के महत्त्व पर बल।

अग्नि पुराण

तीर्थों में स्नान और शिव-विष्णु पूजा का संयुक्त विधान।

ब्रह्मवैवर्त पुराण

भगवान विष्णु के मतस्यावतार का उल्लेख और ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्ति का मार्ग।


स्कन्द पुराण:

कार्तिके पूर्णिमायां तु स्नात्वा दानेन यत्फलम्।
तत्सर्वेषु तीर्थेषु वर्षकोटि-समुद्भवम्॥
(
अर्थ: कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दान से जो फल प्राप्त होता है, वह करोड़ों वर्षों के तीर्थ-स्नान से भी नहीं मिलता।)

पद्म पुराण:

कार्तिके दीपदानं सर्वपापप्रणाशनम्।
(
दीपदान समस्त पापों का नाश करता है)

अग्नि पुराण:
कार्तिक पूर्णिमा को शिव द्वारा त्रिपुरासुर-वध तथा ब्रह्मा-विष्णु-शिव की संयुक्त कृपा की तिथि कहा गया है।

महाभारतअनुशासन पर्व

यत्र कार्तिक पूर्णिमा, तत्र मोक्षस्य द्वारम्
(
जहाँ कार्तिक पूर्णिमा है, वहाँ मोक्ष का द्वार खुला है)

ऋग्वेद / यजुर्वेद संकेत
कार्तिक मास को हेमन्त ऋतु का पुण्य-काल एवंअग्नि-उपासना एवं दानका श्रेष्ठ समय घोषित किया गया।


🔱 त्रिपुरारी पूर्णिमा की कथा: शिव द्वारा त्रिपुरासुर-वध


पुराणों के अनुसार, दैत्यराज तरकासुर के पुत्र त्रिपुरासुर नामक एक महाशक्तिशाली राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तीन अजेय नगरों (त्रिलोक) का निर्माण किया था:
🔸 स्वर्ग में स्वर्णपुरी
🔸 पृथ्वी पर रजतपुरी
🔸 पाताल में लोहपुरी

वह अदृश्य, अभेद्य और सर्वशक्तिशाली हो गया। उसने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। सभी देवता जब उससे परास्त हो गए, तब उन्होंने भगवान शिव की शरण ली। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन, गोधूलि वेला में, एक ही बाण से त्रिपुरासुर और उसके तीनों नगरों (त्रिपुर) को भस्म कर दिया। इसी कारण यह तिथि त्रिपुरारी पूर्णिमा कहलाती है। इस विजय को 'त्रिपुर विजय' कहते हैं। देवताओं ने प्रसन्न होकर इस दिन को 'देव दीपावली' के रूप में मनाया, शिव को 'त्रिपुरारी' नाम मिला। इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने काशी में दीप जलाएयही देव दीपावली की परंपरा है।

विष्णु भगवान केमत्स्य अवतारका प्राकट्य

कार्तिक पूर्णिमा केवल शिव से ही नहीं, बल्कि भगवान विष्णु से भी गहन रूप से जुड़ी हुई है।

  • प्रमाण: मत्स्य पुराण के अनुसार, इसी शुभ तिथि पर भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए अपना पहला अवतार 'मत्स्य अवतार' धारण किया था। यह अवतार सृष्टि के प्रथम मनु, राजा वैवस्वत मनु की रक्षा करने और वेदों को दैत्य हयग्रीव से बचाने के लिए लिया गया था।

तुलसी पूजा और दीपदान से संबंध

यह तिथि दीपदान, दान-पुण्य, स्नान, जप-ध्यान और तुलसी पूजा से गहन रूप से जुड़ी है क्योंकि यह चातुर्मास की समाप्ति और देवों की जागृति का समय होता है। विष्णु को प्रिय तुलसी और शिव को प्रिय दीपदान, दोनों के मिलन से यह दिन अत्यंत फलदायी बन जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा तुलसी विवाह काल का अंतिम पड़ाव हैयानी वह दिन जब तुलसी भगवान विष्णु / शालिग्राम के साथ पूर्णतःसौभाग्य रूपामानी जाती है।
तुलसी को विष्णु-पत्नी का स्थान इसी पूर्णिमा के बाद प्राप्त होता है।
पद्म पुराण में कहा गया है:

कार्तिके पूर्णिमायां तु तुलसी पूजिता यदा।
सर्वरोगहर्त्री, सर्वकामफलप्रदा॥

इस दिन तुलसी के नीचे दीपदान, जलदान और कृतज्ञता प्रार्थना करना विशेष रूप से फलदायी है।

 


3️ वैदिक एवं पुराणिक प्रमाण 

शास्त्रीय प्रमाण इस पर्व के अनुष्ठानों की सत्यता और महिमा को स्थापित करते हैं।

श्लोक / उद्धरण (संस्कृत + अनुवाद सहित)

कार्तिक मास में गंगा स्नान के फल का उल्लेख करते हुए एक प्रसिद्ध श्लोक है:

श्लोक:

"कार्तिकस्य तु माहात्म्यं, तुलस्या: सन्निधौ तथा।

दीपदानं गंगायां, त्रीणि श्रुत्वा विमुक्तिदम्।।"

अनुवाद:

"कार्तिक मास का माहात्म्य, तुलसी की निकटता, और गंगा में दीपदानये तीन बातें सुनने मात्र से भी मुक्ति प्रदान करती हैं।"

कार्तिक स्नान”, “दीपदानऔरगो-दानके महत्त्व के शास्त्रीय प्रमाण

  • कार्तिक स्नान: पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक पूर्णिमा पर ब्रह्ममुहूर्त में किया गया स्नान सभी तीर्थों के स्नान के समान फल देता है। यह शारीरिक और मानसिक शुद्धता के लिए अनिवार्य बताया गया है।

  • दीपदान: स्कंद पुराण में उल्लेख है कि जो मनुष्य कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिरों, नदियों के किनारे, और घर में दीपदान करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और वह विष्णु लोक में स्थान पाता है।

  • गो-दान: शास्त्रों में गो-दान (गाय का दान) को महादान कहा गया है। यह माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गो-दान करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और पितरों को शांति मिलती है।

गंगा स्नान और तीर्थस्नान का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण

  • आध्यात्मिक कारण: यह माना जाता है कि पूर्णिमा की तिथि पर सभी तीर्थों का जल गंगा जल में समाहित होता है। इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से व्यक्ति को सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है।
  • वैज्ञानिक कारण: कार्तिक माह के अंत में सूर्य की स्थिति और वातावरण में परिवर्तन आता है। इस समय किया गया शीतल जल स्नान (ब्रह्ममुहूर्त में) शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को बढ़ाता है, रक्त संचार (Blood Circulation) को तेज करता है, और मन को शांत, ध्यानस्थ करने में सहायक होता है।

4️ कार्तिक पूर्णिमा और तुलसी का विशेष संबंध

तुलसी को वृंदा और भगवान विष्णु की पत्नी (सात्विक रूप से) माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर तुलसी की पूजा, इस पर्व की आत्मा है।

तुलसी विवाह (शालिग्राम और तुलसी विवाह) का विस्तार

कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) को तुलसी विवाह का आरंभ होता है और इसका समापन पूर्णिमा को किया जाता है। भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया जाता है। यह विवाह इस बात का प्रतीक है कि भगवान विष्णु चातुर्मास की योगनिद्रा से जागकर, पुन: अपने भक्तों के साथ वैवाहिक जीवन के आनंद का भोग करते हैं।

क्यों कहा जाता है कितुलसी के बिना कार्तिक पूर्णिमा अधूरी है”?

तुलसी को भगवान विष्णु की सबसे प्रिय मानी गई हैं। पद्म पुराण के अनुसार, जिस घर में तुलसी की पूजा होती है, वहां स्वयं लक्ष्मी और नारायण निवास करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के पौधे का दर्शन, परिक्रमा और पूजन करने से इस महापर्व का फल अधूरा रह जाता है।

तुलसी और भगवान विष्णु के मिलन की कथा

एक कथा के अनुसार, माता तुलसी (वृंदा) ने पतिव्रता धर्म के भंग होने पर भगवान विष्णु को पत्थर बनने का शाप दिया था (जिसके कारण वे शालिग्राम बने) बाद में, भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके हृदय पर और सिर पर सदैव स्थान पाएंगी, और बिना तुलसी के उनकी कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होगी। यह मिलन ही कार्तिक पूर्णिमा के आसपास मनाया जाता है।

तुलसी के पौधे के चारों ओर दीपदान और परिक्रमा का महत्त्व

तुलसी के समीप दीपदान करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मान्यता है कि तुलसी की 11, 21, या 108 बार परिक्रमा करने से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

5️ इस दिन किए जाने वाले मुख्य कार्य : पुण्य संचय का महामार्ग

कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए पुण्य कर्मों का फल अनंत गुना होता है। इस दिन शास्त्रों द्वारा बताए गए निम्नलिखित कार्यों को अवश्य करना चाहिए:

सुबह ब्रह्ममुहूर्त में स्नान

·        विधि: ब्रह्ममुहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटे पहले) में उठकर, किसी पवित्र नदी, घाट या घर पर ही तीर्थ जल मिलाकर स्नान करें।

·        महत्व: इस समय स्नान करने से मन शुद्ध होता है, शरीर पवित्र होता है और व्यक्ति दिन भर ऊर्जावान बना रहता है।

गंगा/तीर्थ/सरवर/कुएं/नदी में पवित्र स्नान

·        शास्त्रों के अनुसार, यदि गंगा, यमुना, सरस्वती या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान संभव हो, तो अपने स्नान जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसे कार्तिक स्नान कहते हैं।

दीपदान: प्रकाश का महादान

दीपदान इस पर्व का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह दीप केवल प्रकाश नहीं, बल्कि हमारी श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक हैं।

·        दीपदान के स्थान:

o   घर और मंदिर: मुख्य द्वार पर, पूजा स्थल पर, और तुलसी के पास।

o   नदी/घाट: पवित्र नदी या जल स्रोत के किनारे दीप प्रवाहित करें।

o   गाय/पीपल: गौशाला या पीपल के वृक्ष के नीचे दीप जलाएं।

o   श्मशान/अंधेरा स्थान: माना जाता है कि श्मशान में दीपदान करने से पितरों को शांति मिलती है।

अन्य पुण्यकारी कार्य

·        तुलसी पूजा: तुलसी के पौधे की परिक्रमा करें, उन्हें जल चढ़ाएं और उनकी आरती करें।

·        गो-सेवा: गाय को भोजन कराएं, चारा खिलाएं या गौशाला में दान दें।

·        ब्राह्मण भोजन: ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।

·        पितरों के लिए दीपदान: किसी ऊँचे स्थान पर पितरों के निमित्त दीप जलाकर रखें।

·        कथा श्रवण, जप और पाठ: श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करें, नमो नारायणाय या नमः शिवाय मंत्र का अधिकाधिक जप करें।

कंदील/आकाशदीप जलाने की परंपरा

·        कार्तिक मास में पूरे माह आकाशदीप (कंदील) जलाया जाता है, जिसका समापन पूर्णिमा को होता है। यह दीप उन देवताओं के स्वागत का प्रतीक है, जो चातुर्मास के बाद पृथ्वी पर आते हैं।

व्रत, दान और अन्नदान का फल

·        इस दिन सामर्थ्य अनुसार अन्नदान, वस्त्रदान, दीपदान, ताम्बूलदान, गौदान, स्वर्णदान, अन्नक्षेत्र-सेवा या अन्य उपयोगी वस्तुओं का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यह दान सीधे मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

6️ इस दिन जो कार्य वर्जित/प्रतिबन्धित हैं :

कार्तिक पूर्णिमा को एक सात्विक पर्व माना गया है, इसलिए इस दिन निम्नलिखित कार्यों से बचना चाहिए:

वर्जित कार्य

कारण

मांंसाहार, मद्यपान, तामसिक भोजन

इस दिन सात्विक, शुद्ध और शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए ताकि शरीर और मन पूजा के लिए पवित्र रहें।

झगड़ा, अपशब्द, क्रोध, दुर्व्यवहार

क्रोध और कटु वचन, पूजा और तप के फल को नष्ट कर देते हैं। इस दिन पूर्ण शांति और प्रेम बनाए रखें।

झूठ बोलना, चोरी, छल-कपट

ये कार्य दान के पुण्य को भी हर लेते हैं। मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहना अनिवार्य है।

बेसुध होकर सोना

विशेषकर सूर्यास्त के बाद नहीं सोना चाहिए, क्योंकि इस समय देव दीपावली का पुण्यकाल होता है।

किसी भी देवता/तुलसी/गौ-माता का अनादर

सभी पूजनीय तत्वों का सम्मान करें। तुलसी को पत्तों से तोड़ना (आवश्यक पूजा को छोड़कर) और गौ-माता को कष्ट देना वर्जित है।

दीप बुझाना या पैरों से ठोकर मारना

दीप को अग्निदेव का स्वरूप माना गया है, उसका अनादर नहीं करना चाहिए।

कटु वचन, अपवित्र आचरण

ब्रह्मचर्य का पालन और संयमित व्यवहार आवश्यक है।


7️ वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व

कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व केवल आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, स्वास्थ्य और ऊर्जा के विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है।

कार्तिक माह में वातावरण, सूर्य की स्थिति और ऊर्जा स्तर

  • वातावरण और ऋतु परिवर्तन: कार्तिक माह वह समय है जब वर्षा ऋतु का समापन होता है और शीत ऋतु का आगमन होता है। वातावरण शुद्ध और निर्मल होता है।

  • सूर्य और चन्द्रमा की ऊर्जा: पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है, जिससे उसकी शीतल और शांत ऊर्जा (Lunar Energy) सर्वाधिक मात्रा में पृथ्वी पर आती है। यह ऊर्जा शरीर और मन को शांति देती है।

  • शरीर, मन और ऊर्जा स्तर: शीतल जल में स्नान (कार्तिक स्नान) शरीर के ऊर्जा चक्रों को सक्रिय करता है, मन को शांत करता है और ध्यान में गहराई लाता है।

दीपदान और अग्नि-ऊर्जा का वैज्ञानिक पक्ष

  • वातावरण शुद्धि: दीपों को जलाने से उत्पन्न होने वाली अग्नि-ऊर्जा और उससे निकलने वाला धुआँ (विशेषकर घी/तेल के दीयों से) वातावरण में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म-कीटाणुओं (Microbes) का नाश करता है।

  • नकारात्मकता नाश: अग्नि नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है। पूरे घर और घाटों पर दीप जलाने से एक सकारात्मक और उत्साहपूर्ण वातावरणीय ऊर्जा क्षेत्र (Aura) का निर्माण होता है।

गंगाजल और कार्तिक स्नान का वैज्ञानिक पहलू

  • पवित्र नदियों (विशेषकर गंगा) के जल में ऐसे बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) होते हैं, जो कई हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। कार्तिक माह में सुबह स्नान करने से शरीर और त्वचा को प्राकृतिक रूप से शुद्ध करने में मदद मिलती है।

  • यही कारण है कि यह दिन मानसिक शांति और धन-संपदा का सूचक माना गया है, क्योंकि स्वस्थ और शांत मन ही समृद्धि और सही निर्णय का आधार होता है।

8️ भारत के विभिन्न राज्यों में कार्तिक पूर्णिमा का स्वरूप

कार्तिक पूर्णिमा भारतवर्ष में विभिन्न संस्कृतियों के रंगों में रंगकर मनाई जाती है, जिसे उसके स्थानीय नाम से जाना जाता है:

  • उत्तर भारत (काशी, हरिद्वार, प्रयागराज): यहाँ इसे मुख्य रूप से देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। काशी के घाट लाखों दीयों से जगमगाते हैं।

  • दक्षिण भारत (तमिलनाडु): यहाँ इसे कार्तिगई दीपम के रूप में मनाया जाता है, जहाँ शिव मंदिरों और घरों में तेल के दीपक जलाए जाते हैं। विशेष रूप से तिरुवन्नामलाई में अग्नि दीपम उत्सव भव्य होता है।

  • राजस्थान/गुजरात: इन राज्यों में तीर्थ स्नान (पुष्कर, द्वारका) और विशेष रूप से अन्नकूट और दान परंपरा का अत्यधिक महत्व होता है।

  • ओडिशा: यहाँ यह पर्व बाली यात्रा उत्सव से जुड़ा है, जो प्राचीन काल में बाली द्वीप तक की गई समुद्री यात्राओं की याद में मनाया जाता है (जगन्नाथ संस्कृति)

  • असम: यहाँ भी कार्तिक स्नान की परंपरा है और इस दौरान भगवान जगन्नाथ का रथोत्सव भी कई स्थानों पर मनाया जाता है।

  • महाराष्ट्र: इस राज्य में गंगा स्नान (गोदावरी, कृष्णा नदी) और दीपोत्सव का आयोजन होता है, साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ किया जाता है।

9️ कार्तिक पूर्णिमा पर जप और स्तोत्र

इस दिन किए गए जप और पाठ से पुण्यफल कई गुना बढ़ जाता है। निम्नलिखित मंत्रों का जप अवश्य करना चाहिए:

  • भगवान विष्णु के लिए: नमो भगवते वासुदेवाय
  • भगवान शिव के लिए: शिव पंचाक्षरी नमः शिवाय
  • नाम जप: गोविन्द नाम जप
  • तुलसी के लिए: तुलसी गायत्री मंत्र - श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।
  • पाठ: श्रीमद् भागवत पाठ, विष्णु सहस्रनाम, शिव चालीसा, सत्यनारायण कथा।

🔟 FAQ :

यहाँ कुछ सबसे अधिक खोजे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं, जो Voice Search और Featured Snippet में सहायता करेंगे:

प्रश्न 1: कार्तिक पूर्णिमा 2025 कब है?

उत्तर: कार्तिक पूर्णिमा की तिथि प्रतिवर्ष बदलती है, जो चन्द्रमा की गति पर निर्भर करती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर 4 को रात 10 बजकर 36 मिनट से लेकर नवंबर को शाम 6 बजकर 48 मिनट तक रहने वाली है. उदिया तिथि के कारण कार्तिक पूर्णिमा 5 नवंबर को मनाई जाएगी

प्रश्न 2: कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान क्यों किया जाता है?

उत्तर: दीपदान मुख्य रूप से दो कारणों से किया जाता है: पहला, भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध करने की खुशी में देवताओं के उत्सव को याद करने के लिए; और दूसरा, भगवान विष्णु को योगनिद्रा से जागृत होने पर प्रकाश अर्पित करने के लिए। यह नकारात्मकता को दूर करने का भी प्रतीक है।

प्रश्न 3: क्या कार्तिक पूर्णिमा पर बाल कटवा सकते हैं?

उत्तर: अधिकांश हिन्दू परंपराओं में पूर्णिमा तिथि को बाल कटवाना, दाढ़ी बनाना या नाखून काटना वर्जित माना गया है। इस दिन पूर्ण पवित्रता बनाए रखने की सलाह दी जाती है।

प्रश्न 4: तुलसी विवाह कब और कैसे होता है?

उत्तर: तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इसमें तुलसी के पौधे (वृंदा) और शालिग्राम (विष्णु का प्रतीक) का प्रतीकात्मक विवाह कराया जाता है, जिसमें सामान्य विवाह की तरह सभी रस्में की जाती हैं।

प्रश्न 5: क्या महिलाएं व्रत कर सकती हैं?

उत्तर: हाँ, महिलाएं कार्तिक पूर्णिमा का व्रत पूरी श्रद्धा से कर सकती हैं। यह व्रत संतान, सौभाग्य और अखंड लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए बहुत फलदायी माना जाता है।

प्रश्न 6: इस दिन कौन-कौन से तीज-त्योहार साथ-साथ मनाए जाते हैं?

उत्तर: कार्तिक पूर्णिमा के साथ देव दीपावली, गुरु नानक जयंती (सिखों का पवित्र पर्व), और पुष्कर मेला (राजस्थान) का समापन भी होता है, जिससे यह एक बहुसांस्कृतिक पर्व बन जाता है।

प्रश्न 7: कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान क्यों किया जाता है?

क्योंकि यह स्नान संतान, स्वास्थ्य, धन, मोक्ष, पुण्य और पाप-क्षय का श्रेष्ठ माध्यम माना गया है।

प्रश्न 8: क्या स्त्रियाँ और गृहस्थ भी व्रत कर सकते हैं?

हाँ, यह व्रत सर्व-वर्ण, सर्व-आयु, सर्व-लिंग के लिए कल्याणकारी है।

प्रश्न 9: तुलसी को इस दिन छूना वर्जित क्यों है?

क्योंकि तुलसी विवाह काल में तुलसीवधू रूपाहोती हैंउन्हें स्पर्श निषिद्ध।

प्रश्न 10: क्या कार्तिक पूर्णिमा पर विवाह शुभ है?

हाँ, यह तिथि शुभ-मुहूर्त-रहित भी मंगलकारी मानी जाती है

प्रश्न 11: क्या दीपदान अनिवार्य है?

अनिवार्य नहीं, परंतु सर्वाधिक फलदायी कर्मों में से एक है। 


💡 निष्कर्ष

कार्तिक पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं है, बल्कि प्रकाश, शुद्धि और दान का महापर्व है। यह हमें याद दिलाता है कि बुराई (त्रिपुरासुर) पर अच्छाई (शिव) की विजय निश्चित है, और जीवन में त्याग, स्नान और सेवा का मार्ग ही वास्तविक सुख और मोक्ष की ओर ले जाता है।

आज का चिंतन: आइए, इस कार्तिक पूर्णिमा पर केवल दीप जलाएँ, बल्कि अपने भीतर के अज्ञान के अंधकार को भी ज्ञान के दीप से प्रकाशित करें।

शुभकामनाएँ: आपको और आपके परिवार को देव दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा के इस महापुण्य पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Keywords:  कार्तिक पूर्णिमा 2025 / 2026, कार्तिक पूर्णिमा क्या है, कार्तिक पूर्णिमा का महत्व, कार्तिक पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, देव दीपावली वाराणसी, कार्तिक पूर्णिमा व्रत विधि, कार्तिक पूर्णिमा तुलसी विवाह, त्रिपुरारी पूर्णिमा कथा, कार्तिक पूर्णिमा स्नान का महत्व, कार्तिक पूर्णिमा क्या करें और क्या न करें, कार्तिक पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त, कार्तिक स्नान का महत्व, तुलसी पूजा कार्तिक पूर्णिमा, गंगा स्नान कार्तिक पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा पौराणिक कथाएँ, कार्तिक पूर्णिमा वेद पुराण प्रमाण

Post a Comment

0 Comments