🔔देवउठनी एकादशी 2025: चार महीने की निद्रा के बाद जागेंगे श्रीहरि, शुभ कार्यों की होगी शुरुआत!
हर साल की तरह, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। इसे देवउठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।
यह वह शुभ अवसर है जब भगवान श्रीहरि विष्णु अपनी चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं, और पृथ्वी पर सभी शुभ कार्यों का पुनः आरंभ होता है।
📅 देवउठनी एकादशी 2025 तिथि और मुहूर्त
इस वर्ष देवउठनी एकादशी 2025 का व्रत शनिवार, 01 नवंबर 2025 को रखा जाएगा।
|
विवरण |
तिथि और समय |
|
एकादशी तिथि प्रारंभ |
01 नवंबर 2025, सुबह 09:12 बजे |
|
एकादशी तिथि समाप्त |
02 नवंबर 2025, सुबह 07:32 बजे |
|
व्रत |
01 नवंबर 2025, शनिवार |
|
व्रत पारण का समय |
02 नवंबर 2025, दोपहर 01:11 बजे से 03:23 बजे तक |
|
तुलसी विवाह |
02 नवंबर 2025, रविवार (द्वादशी तिथि) |
🪔 नोट: गृहस्थ लोग 01 नवंबर को और वैष्णव संप्रदाय के लोग 02 नवंबर को एकादशी का व्रत रखेंगे।
👉 तुलसी विवाह 2025 का आयोजन 02 नवंबर 2025 (रविवार) को, अर्थात द्वादशी तिथि को किया जाएगा — जब भगवान विष्णु (शालिग्राम रूप में) और माता तुलसी का पावन विवाह संपन्न होता है।
🌟 देवउठनी एकादशी का महत्व
हर माह दो एकादशी तिथियाँ आती हैं — कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष।
यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है, और सभी में देवउठनी एकादशी को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
इस दिन भगवान विष्णु की योगनिद्रा समाप्त होती है, जो देवशयनी एकादशी (जुलाई में) से शुरू हुई थी। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है।
🔱 चातुर्मास में शुभ कार्य क्यों वर्जित होते हैं?
चातुर्मास के दौरान देवता विश्राम अवस्था में रहते हैं। अतः विवाह, गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्यों में उनका आशीर्वाद नहीं माना जाता।
देवउठनी एकादशी के दिन जब श्रीहरि जागते हैं, तब देवों का आशीर्वाद पुनः प्राप्त होता है और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
📖 देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा (Dev Uthni Ekadashi Ki Katha)
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सत्ययुग में मुर नामक एक दैत्य था जो देवताओं को बहुत पीड़ा देता था। सभी देवता भयभीत होकर भगवान विष्णु की शरण में गए।
दैत्य से युद्ध करते हुए भगवान विष्णु विश्राम हेतु हिमालय की एक गुफा में गए, तब दैत्य मुर वहाँ पहुँचा और उन पर आक्रमण करने लगा।
उसी समय भगवान की रक्षा के लिए गुफा से एक तेजस्वी कन्या प्रकट हुई — यह थीं देवी एकादशी। उन्होंने दैत्य मुर का वध किया।
भगवान विष्णु प्रसन्न होकर बोले —
“हे देवी! तुम मेरे समान पूजनीय होगी। जो भी तुम्हारे दिन व्रत करेगा, उसे समस्त पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्त होगा।”
इस प्रकार इस तिथि का नाम पड़ा — एकादशी, जो मोक्षदायिनी कहलाती है।
🙏 देवउठनी एकादशी क्यों है सबसे खास?
सभी 24 एकादशियों में देवउठनी एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
यह दिन शुभ कार्यों के आरंभ का प्रतीक है।
✨ विशेष कारण:
- चातुर्मास की समाप्ति: चार महीने की विष्णु योगनिद्रा का अंत।
- शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत: विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण आदि शुरू किए जा सकते हैं।
- तुलसी विवाह: देवउठनी एकादशी के अगले दिन, अर्थात द्वादशी तिथि (02 नवंबर 2025) को भगवान शालिग्राम (विष्णु स्वरूप) और माता तुलसी का विवाह मनाया जाता है। यह पर्व भक्तों के लिए पवित्र विवाह उत्सव के समान होता है।
🪔 देवउठनी एकादशी पूजा विधि और अनुष्ठान
- प्रातःकाल स्नान और संकल्प: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान का स्वरूप: इस दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप (शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी रूप) या शालिग्राम शिला की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है।
- पंचामृत स्नान: भगवान को स्नान कराते समय पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) का प्रयोग करें।
- पूजन सामग्री: तुलसी दल, पुष्प, फल, गन्ना, सिंघाड़ा, मौसमी फल, और मिठाई भगवान को अर्पित करें।
- देवों को जगाना: शाम के समय शंख, घंटी बजाकर परिवार सहित गीत गाएं —
“उठो देव, बैठो देव, अंगुरिया चटकाओ देव।” - दीपदान: तुलसी के पौधे और घर के मुख्य द्वार पर घी का दीप जलाएं।
- व्रत पारण: द्वादशी तिथि (02 नवंबर 2025) को दोपहर के शुभ मुहूर्त में व्रत खोलें और ब्राह्मणों को दान दें।
✅ क्या करें और क्या न करें (Dos and Don’ts)
🌼 क्या करें (Dos)
- श्रद्धा पूर्वक व्रत और पूजन करें।
- दान करें: अन्न, वस्त्र, गुड़, पीली वस्तुएँ, या गन्ना।
- मंत्र जप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”।
- सात्विक जीवन: ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करें।
🚫 क्या न करें (Don’ts)
- अन्न का सेवन न करें: चावल, गेहूं, दाल आदि से परहेज। केवल फलाहार करें।
- तुलसी तोड़ना वर्जित: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के पत्ते न तोड़ें।
- असत्य, क्रोध और निंदा से बचें।
- तामसिक भोजन न करें: प्याज, लहसुन और मांसाहार वर्जित हैं।
🌺 आध्यात्मिक लाभ और महत्व (Spiritual Benefits)
- इस व्रत से मन और आत्मा की शुद्धि होती है।
- सभी पापों का नाश होकर सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- शास्त्रों में वर्णित है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से देवउठनी एकादशी का व्रत करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है और अंततः वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
💐 तुलसी
विवाह 2025: भगवान विष्णु और तुलसी का
दिव्य संगम
देवउठनी एकादशी के अगले दिन, यानी द्वादशी तिथि (02 नवंबर 2025) को तुलसी विवाह मनाया जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप और माता तुलसी देवी का विवाह संपन्न किया जाता है। इसे देव विवाह भी कहा जाता है।
📜 तुलसी विवाह की कथा
एक समय की बात है — शंखचूड़ नामक असुर अपनी पत्नी तुलसी (वृंदा) की तपस्या के प्रभाव से अजेय हो गया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।
भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का वध करने के लिए उसका कवच छीनने हेतु शंखचूड़ का रूप धारण किया और वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग कर दिया।
जब वृंदा को यह सत्य ज्ञात हुआ, तो उसने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को शाप दिया —
“हे विष्णु! तुम पत्थर बन जाओ।”
वृंदा के तप और शाप से भगवान शालिग्राम शिला में परिवर्तित हो गए और वृंदा का शरीर धरती पर तुलसी पौधे के रूप में परिणत हुआ।
भगवान विष्णु ने कहा —
“हे देवी, अब से मैं शालिग्राम रूप में रहूँगा और तुम तुलसी रूप में मेरी पत्नी कहलाओगी। तुम्हारे बिना मेरा कोई पूजन पूर्ण नहीं होगा।”
इस प्रकार तुलसी और विष्णु का विवाह हर वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वादशी को मनाया जाता है।
🌿 तुलसी विवाह का महत्व
- विवाह योग्य कन्याओं के लिए विशेष रूप से शुभ दिन।
- तुलसी विवाह करने से घर में समृद्धि, शांति और मंगल का वास होता है।
- इस दिन तुलसी के पौधे को सुहाग की तरह सजाया जाता है, और विवाह विधि में दीप, सुहाग सामग्री, और फल-फूल अर्पित किए जाते हैं।
🌕 कार्तिक पूर्णिमा स्नान का महत्व
देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह के बाद आने वाली तिथि होती है — कार्तिक पूर्णिमा, जिसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
यह दिन पुण्य, दान और स्नान के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
💧 कार्तिक पूर्णिमा स्नान का धार्मिक अर्थ:
- इस दिन गंगा, यमुना, सरयू या किसी पवित्र नदी में स्नान करने से अनंत जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।
- भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर का संहार किया था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
- इस दिन दीपदान करने से वैकुंठ प्राप्ति और असीम पुण्य मिलता है।
🌸 भविष्य पुराण के अनुसार,
“कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीपदान और विष्णु-शिव पूजन करने से मनुष्य को सहस्त्र अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है।”
🌼 निष्कर्ष: शुभ कार्यों की नई शुरुआत
देवउठनी एकादशी 2025 न केवल एक व्रत है बल्कि भक्ति, संयम और मंगल का पर्व है।
जब श्रीहरि अपनी योगनिद्रा से जागते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
यह दिन आपके जीवन में सुख, समृद्धि और शुभता लेकर आए।
देवउठनी एकादशी से लेकर तुलसी
विवाह
और कार्तिक पूर्णिमा तक का यह
समय भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त
करने का सर्वोत्तम अवसर
है।
यह पर्व हमें याद
दिलाता है कि जब
हम श्रद्धा, संयम और भक्ति
के साथ जीवन जीते
हैं, तो हर दिन
शुभ बन जाता है।
इस शुभ अवसर पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी आपके जीवन में
शांति,
समृद्धि
और मंगल का संचार करें।
🙏जय श्रीहरि विष्णु! 🌸
Keywords: देवउठनी एकादशी 2025, Dev Uthni Ekadashi 2025, देवउठनी एकादशी की कथा, देवउठनी एकादशी व्रत विधि, देवउठनी एकादशी पूजा विधि, तुलसी विवाह 2025, चातुर्मास समाप्ति, प्रबोधिनी एकादशी 2025, भगवान विष्णु योगनिद्रा, एकादशी व्रत कथा, वैकुंठ धाम, अश्वमेध यज्ञ पुण्य, Dev Uthani Ekadashi story in Hindi.


0 Comments